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Friday 23 November 2012

डाकबंगले की भूतनी

1952 -53  के ज़माने की घटना है.  पांच  शिकारी मध्य प्रदेश के जंगलों में शिकार खेलने गए थे. उन्हें ठहरने के लिए जगह नहीं मिल रही थी. डाकबंगला  खाली नहीं था. केयर टेकर ने बताया कि जंगल के अन्दर एक पुराना  डाकबंगला  है जो खंडहर जैसा हो चुका है. पानी की व्यवस्था भी है. अगर चाहें तो उसे  साफ़ सुथरा कर ठहर सकते हैं. उनके पास कोई विकल्प नहीं था. अँधेरा  हो रहा था. इसलिए वे पुराने डाकबंगला  में पहुंचे.एक कमरे को साफ़ सुथरा किया और जमीन पर ही बिस्तर बिछा लिया. अपनी बंदूकें और राइफलें दीवाल में टिका दिन और ताश खेलने बैठ गए देर रात को साथ लाये भोजन को ग्रहण कर सो गए. उनमें से एक जे एन सिंह   को नींद नहीं आ रही थी. उसने सिगरेट जलाई और उसके कश लेने लगा. तभी उसने देखा कि अचानक खिड़की से एक हाथ बढ़ता हुआ उसकी गर्दन की ओर आ रहा है. वह चौंक उठा. और जोरों से चिल्लाया. अन्य लोग उठ गए हाथ गायब हो गया.उसने सबको घटना की जानकारी दी तो उन्होंने कहा कि यह तुम्हारा भ्रम होगा. या सपना देखा होगा. खिड़की से इतनी दूर हाथ कैसे पहुंचेगा. नई जगह में कभी-कभी ऐसा लगता है. सो जाओ. कहीं कुछ नहीं है.
उसने लाख विश्वास दिलाने की कोशिश की कि यह सच है लेकिन किसी ने विश्वास नहीं किया. सारे लोग फिर सो गए. उसने भी सोने की कोशिश की लेकिन नींद नहीं आई.
सुबह उठकर सभी लोग नाश्ता-पानी कर शिकार की तलाश में निकल गए. उस दिन सिर्फ कुछ वनमुर्गियाँ मिलीं जिन्हें शाम को पकाकर उनलोगों ने खाया. थोडा टहल घूम कर वे ताश खेलने लगे. तभी पायल की आवाज़  आई . जैसे कोई दौड़ता हुआ जा रहा हो. इतनी रात में कौन औरत जंगल में दौड़ रही है. उनके मन में सवाल उठा. खिड़की पर जाकर देखा तो कुछ दिखाई  नहीं पड़ा. वे खाना खाकर चुपचाप सो गए. जे एन सिंह को उस रात भी नींद नहीं आ रही थी वे उस हाथ के बारे में ही सोच रहे थे. तभी झपकी  लगी . आख खुली तो देखा कि खिड़की से एक हाथ उनकी  गर्दन तक  पहुँच  चुका है खिड़की पर एक लडकी खड़ी    हंस रही है. वे चिल्लाये . सभी लोग उठ गए. उन्होंने पूरी बात  बताई  और कहा कि चिल्लाता  नहीं तो मेरी  गर्दन दबा  deti. सभी लोग खिड़की के पास गए तो जंगल की ओर एक लडकी  जाती  हुई  दिखाई  पड़ी . उसके पायल  की आवाज़  आ रही थी. सभी लोगों  को विश्वास हो गया कि कुछ न  कुछ चक्कर  है. उसी  की बात  करते  हुए वे सो गए. अगले  दिन वे लोग नाश्ता-पानी कर शिकार  पर निकले . रस्ते में कुछ आदिवासी मिले . उन्होंने पूछा कि आपलोग किधर जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि शेर का  शिकार करने  आये  थे. वह मिल नहीं रहा है तो अब  हिरन  मारकर चले  जायेंगे. आदिवासियों ने पूछा कि ठहरे कहाँ हैं. उन्होंने बताया कि पुराने डाकबंगले में.
आदिवासियों  ने चौंककर पूछा कि कब से ठहरे हैं. उन्होंने बताया कि दो  दिनों  से. आदिवासियों  ने हैरानी   से पूछा  कि दो  दिनों  ने ठहरे  हैं और जीवित  हैं.
क्या  मतलब
साहब  वह भूता  डाकबंगला है. वहां एक लडकी  की भटकती  आत्मा  है जो हर  ठहरने वाले  को मार  डालती  है.
किसकी  आत्मा  है वह.
वह एक केयर टेकर की बेटी  थी. एक बार  केयरटेकर  बीमार  था और कुछ शिकारी ठहरे  हुए थे. चौकीदार  के बीमार  होने  के कारण  उसकी बेटी  ही उन्हें खाना  पानी देने  जाती  थी. उन्होंने उसके साथ जबर्दाष्टि  की और maar डाला . तभी से डाकबंगला  वीरान  हो गया. कोई भूला   भटका   ठहरा  तो लडकी  की आत्मा  ने मार  डाला . बंगला  भुतहा  हो गया. आपलोग  भी वहां से हट  जाइये . रुकने  का  विचार  हो तो गाँव  में चले  आइयें .
उनलोगों ने रात किसी तरह काटी  और सुबह होते  ही वापस  लौटने  की तयारी  करने  लगे. रात को वह लडकी  खिड़की के पास आई  और बोली  कि देवी -देवताओं  की कृपा  ने तुम्हें  बचा लिया. फिर कभी इधर मत आना.

---छोटे


Tuesday 5 June 2012

एक गायक की भटकती आत्मा

 कहानी अतृप्त आत्माओं की-2

घटना उन दिनों की है जब हिंदी सिनेमा अपना स्वरूप ग्रहण कर रहा था और तकनीकी दृष्टिकोण से आज के मुकाबले बहुत पीछे था. मूक फिल्मों का दौर ख़त्म ही हुआ था. ऑडियो की तकनीक शुरू हो चुकी थी. उन दिनों कुछ फ़िल्मी कलाकारों को अपने ऊपर फिल्माए जाने वाले गीत खुद गाने होते थे. उन दिनों स्व. अशोक कुमार सदाबहार हीरो के रूप में जाने जाते थे. उनके प्रशंसकों की तादाद बहुत बड़ी थी.
एक बार की बात है. शाम को अशोक कुमार शूटिंग से वापस लौट रहे थे. उस समय आसमान में बादल छाये हुए थे. ठंढी हवा चल रही थी. उनकी कार जब घर से कुछ पहले रेलवे क्रॉसिंग के पास पहुंचे तो क्रॉसिंग बंद था. अशोक कुमार गाडी से नीचे उतर गए और ड्राईवर से कहा कि गेट खुलने पर गाडी लेकर घर पर पहुंच जाना मैं बागीचे की तरफ  से होता हुआ आ जाऊंगा.. वे मौसम का आनंद लेते हुए  पेड़ पौधों के बीच से होते हुए निकल गए. एक जगह आंधी में टूटकर गिरा हुआ पेड़ दिखाई पड़े तो थोड़ी देर के लिए वहीं बैठ गए. तभी उन्हें बड़ी सुरीली आवाज़ में किसी के गाने की आवाज़ सुनाई पड़ी. गाना उन्हीं की फिल्म का था और उन्हीं का गाया हुआ था. उन्होंने गाने वाले को ढूँढने की कोशिश की लेकिन वह दिखाई नहीं पड़ा. उन्होंने कहा-भाई! कौन हो? बहुत अच्छा गा रहे हो. सामने आकर गाओ. उधर से आवाज़ आई-पहले पूरा गाना सुन लीजिये.
अशोक कुमार ने उसकी आवाज़ की तारीफ़ की और कहा कि ठीक है भाई गाओ मैं सुन रहा हूं. एक घने पेड़ के ऊपर से गाने की आवाज़ आती रही.
गाना पूरा होने के बाद अशोक कुमार ने गाने को सराहा.
ऊपर से आवाज़ आई-यह गाना मुझे बहुत पसंद था. इसके लिए मैंने आपकी फिल्म 26  बार देखी है. मैं इस गाने को बराबर गता था लेकिन कोई मेरा पूरा गाना सुनता नहीं था. एक दिन मेरा मूड बहुत ख़राब हो गाया. मैं फिल्म देखने गया और सिनेमा हौल की छत से कूदकर अपनी जान दे दी. आपने अखबार में खबर पढ़ी भी होगी.
तब से मैं भटक रहा था कि कोई मेरा गाना सुन ले. आज मैं बहुत खुश हूं कि आपका गाया गाना आप ही को सुनाने का मौका मिला और आपने इसकी तारीफ भी की. अब मेरी आत्मा संतुष्ट हो गयी. मैं अपनी दुनिया में जा रहा हूं. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया!....अब इजाज़त दीजिये...अलविदा!.......

(अशोक कुमार ने यह कहानी ४०-४५ साल पहले किसी पत्रिका में छपवाई     थी. पत्रिका का नाम याद नहीं लेकिन पढ़ी हुई कहानी के आधार पर प्रस्तुत कर रहा हूं.)

---छोटे

Saturday 5 May 2012

कहानी अतृप्त आत्माओं की-1


(अशरीरी आत्माओं का अस्तित्व होता है. इसे विज्ञानं  भी  मानता है. आमतौर पर लोग भूत-प्रेत का नाम सुनते हीं डर जाते हैं. जबकि सच्चाई यह है कि किसी न किसी अतृप्त इच्छा के  कारण वह भटकती रहती हैं. किसी को नुकसान पहुँचाना उनका मकसद नहीं होता. वह तो सिर्फ अपनी अतृप्त इच्छा की पूर्ति के लिए हमारा सहयोग चाहती हैं. वह अपनी बात हमें बताना चाहती हैं. लेकिन हम इतने डरे होते हैं कि उनकी बात, उनका संकेत नहीं समझ पाते. मैं कुछ  ऐसी ही कहानियां सुनाने जा रहा हूँ.)


(1)

भूत बंगले की प्रेतनी

आज से करीब 40  वर्ष पहले की बात है. मेरे एक करीबी रिश्तेदार ब्रिटेन में डॉक्टर थे. गिने-चुने ह्रदय रोग विशेषज्ञों में उनका नाम आता था. उन्होंने शादी नहीं की थी. ब्रिटेन में अपना घर बनवा चुके थे. आराम से रहते थे. एक बार की बात है. उन्हें एक बंगले के बारे में पता चला जिसे भूत बंगला के नाम से जाना जाता था. उसमें कोई रहता नहीं था. उसका मालिक उसे कौड़ी के मोल बेचना चाहता था लेकिन कोई खरीददार नहीं मिल रहा था. डॉक्टर साहब भूत-प्रेत को नहीं मानते थे. पता नहीं उनके मन में क्या आया की अपना मकान बेचकर उन्होंने भूत बंगला खरीद लिया. उसकी रंगाई-पुताई करवाई और गृह-प्रवेश कराकर उसमें रहने चले आये. गृह-प्रवेश के समय भारत से उनके कई रिश्तेदार पहुंचे थे.  जब तक वे रहे, बंगले में चहल-पहल रही. कहीं कोई प्रेत नज़र नहीं आया.उनके वापस लौटने के बाद भी कोई ऐसी घटना नहीं हुई. लेकिन एक रात जब डॉक्टर साहब ड्राईंग रूम में बैठे सिगरेट फूंक रहे थे तो एक अंग्रेज महिला आई और सीने में दर्द की शिकायत करते हुए दवा मांगने लगी. डॉक्टर साहब को आश्चर्य हुआ. गेट पर ताला लगा है. दरवाज़ा बंद है. फिर यह अंदर कैसे चली आई. वे कुछ समझने की कोशिश करते कि वह गायब हो गयी. डॉक्टर साहब सोच में पड़ गए लेकिन ज्यादा ध्यान नहीं दिया. चार-पांच दिन गुजरने के बाद रात के वक़्त जब वह सो रहे थे. वह महिला फिर आई. उन्हें जगाया और दवा मांगने लगी. इसके बाद कभी बरामदे में कभी गार्डेन में नज़र आती रही. इसके बाद वह लगभग हर रात आती दवा मांगती और इसके बाद गायब हो जाती. कई रात इस घटना के घटित होने के बाद एक दिन डॉक्टर साहब ने सोचा कि  इसे दवा देकर देखें क्या करती है. उन्होंने अपने तकिये के नीचे हार्ट की दवा रखी और पास ही एक ग्लास में पानी. रात के वक़्त जैसे ही वह महिला आई डॉक्टर साहब ने दवा उसकी और बढ़ा दी और पानी का ग्लास उसे थमा दिया. महिला ने दवा खायी पानी पी और 'थैंक यू वैरी मच!' कहकर चली गयी.
डॉक्टर साहब इसके बाद करीब 20  वर्षों तक यानी जीवन पर्यंत उसी बंगले में रहे लेकिन वह महिला इसके बाद फिर वह कभी दिखाई नहीं पड़ी. डॉक्टर साहब के देहावसान के बाद उनके परिजनों ने उस बंगले को अच्छी कीमत पर बेची. दरअसल वह महिला दिल की मरीज थी और हार्ट अटैक के कारण उसकी मौत हुई थी जिस वक़्त उसकी मौत हुई उस वक़्त उसे दवा नहीं मिल सकी थी. इसलिए उसकी आत्मा दवा के लिए भटक रही थी. बंगले में जो भी आया उससे उसने दवा मांगी लेकिन लोग डरकर भागते गए और वह बंगला भूत बंगला के नाम से विख्यात हो गया. डॉक्टर साहब डरे नहीं और उसे दवा दे दी. इससे उसकी दवा खाने की इच्छा पूरी हो गयी और वह तृप्त होकर चली गयी.

----छोटे

Wednesday 25 April 2012

जिन्नात की शादी

आरा शहर की घटना है. लगभग 70  वर्ष पुरानी. लेकिन लोगों के बीच अभी भी कही-सुनी जानेवाली. 
आरा शहर का एक मोहल्ला है शिवगंज. वहां हाल के वर्षों तक रूपम सिनेमा हॉल हुआ करता था. उसके बगल की गली में एक बड़े ही विद्वान पुरोहित रहा करते थे जो अपनी ज्योतिष विद्या की जानकारी के लिए दूर-दूर तक जाने जाते थे. 
एक बार की बात है. रात के करीब 2 बजे वे दूसरे शहर के किसी जजमान के यहां से पूजा संपन्न कराकर लौट रहे थे. अपनी गली के मोड़ पर रिक्शा से उतर कर वे घर की और बढे ही थे कि अचानक एक गोरा चिटठा, लम्बा-चौड़ा आदमी उनके सामने आकर खड़ा हो गया. पंडित जी डर  गए. उन्होंने पूछा-'कौन हो भाई! क्या बात है?'
'आप डरें नहीं. मैं एक जिन्न हूं. आपसे बहुत ज़रूरी काम है.' उसने जवाब दिया.
'अरे भाई! एक जिन्नात को मुझसे क्या काम....'
'आपको एक सप्ताह बाद मेरी शादी करनी है. कर्मन टोला की एक युवती का देहांत उसी दिन होना है. उसी के साथ मेरी शादी आपको करनी है. मुहमांगी दक्षिणा दूंगा.'
'जिन्नात की शादी..? मैंने ऐसी शादी कभी कराई नहीं. इसका विधान भी मुझे नहीं मालूम.'
'पंडित जी! शादी तो आप ही को करनी है. कैसे आप जानें. आज से ठीक आठवें दिन आप रात के एक बजे अबर पुल पर आपका इंतज़ार करूँगा. आपको वहां समय पर पहुँच जाना होगा. यह बात किसी को बताना नहीं है.' इतना कहकर जिन्नात गायब हो गया.
पंडित जी घर पहुंचे. रात भर सो नहीं सके. दूसरे दिन तमाम शास्त्रों को पलट डाला लेकिन जिन्नात की शादी की विधि नहीं मिली. अंततः उन्होंने कई किताबों का अध्ययन कर एक अपना तरीका निकाला.
आठवें दिन पंडित जी! डरते-सहमते रात के एक बजे से पहले ही अबर पुल पर पहुँच गए. एक बजे...डेढ़ बजे..दो बज गए लेकिन जिन्न नहीं पहुंचा. वे समझ नहीं पा रहे थे कि क्या करें. तभी अचानक झन्न की आवाज़ के साथ जिन्नात प्रकट हुआ. उसके चेहरे पर परेशानी झलक रही थी.
' माफ़ कीजिये पंडित जी! यह शादी नहीं हो सकेगी.'
'क्यों क्या हो गया.'
'वह लडकी मरी तो ज़रूर लेकिन मरने के वक़्त जब उसे ज़मीन पर लिटाया गया तो रुद्राक्ष का एक दाना उसके शरीर को छू रहा था. इसके कारण मरने के बाद वह सीधे शिवलोक चली गयी. अब वह वहां से वापस नहीं लौटेगी. इसलिए अब उसके साथ मेरी शादी नहीं हो पायेगी.'
उसने पंडित जी की ओर चांदी के  सिक्कों  की एक थैली बढ़ाते हुए कहा-'आप मेरे आग्रह पर यहां तक आये. इसे दक्षिणा समझ कर रख लीजिये. आपकी बड़ी मेहरबानी होगी.'
पंडित जी ने कहा कि जब शादी करवाई नहीं तो दक्षिणा कैसा. लेकिन जिन्नात उनके हाथ में थैली थमाकर  गायब हो गया.
पंडित जी घर वापस लौट आये. कई वर्षों तक उन्होंने इस घटना का किसी से जिक्र नहीं किया. बाद में अपने कुछ करीबी लोगों को यह घटना सुनाई. धीरे-धीरे लोगों तक यह किस्सा पहुंचा.

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Tuesday 24 April 2012

Blog World.Com

 बिहार के छोटे जी के ब्लाग पर रात में मत जाना । अकेले भी मत जाना ।  अगर डरपोक हैं । तब भी मत जाना । क्योंकि इनके ब्लाग पर लिखी हैं - भूत प्रेत की कहानियाँ । इसलिये संभल कर जाना । जी हाँ ! इनका शुभ नाम है - छोटे । और इनकी Industry है - Real Estate और इनका Occupation है - निजी । और इनकी Location है - बक्सर । बिहार India छोटे जी अपने Introduction में कहते हैं -बिहार में जन्मा हूँ । यूपी में पला हूँ । अभी बिहार में हूँ । लेकिन कब तक ? पता नहीं  मैं तरह तरह की कहानियां गढ़ता और सुनता सुनाता रहा हूँ । बच्चे मुझसे भूतों की कहानियां बड़े चाव से सुनते हैं । और इनका Interests है - पढना लिखना । घूमना फिरना । और इनकी Favourite Films है - गाइड । काला पानी । असली नकली । और इनका Favourite Music है - लोक संगीत । और इनकी Favourite Books हैं - ड्राकुला । गाड़ फादर । चंद्रकांता संतति । भूतनाथ । रोहतास मठ । और इनके ब्लाग हैं - रहस्य रोमांच ( भूत प्रेत ) और - At a glance इनके ब्लाग पर जाने हेतु ब्लाग नाम पर क्लिक करें ।

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Tuesday 27 March 2012

मशीन वाला भूत

घटना 1960 के ज़माने की है. अलीगढ आईटीआई में मेरे पिता प्रिंसिपल थे. हमलोग कैम्पस के ही क्वार्टर में रहते थे. गर्मियों के दिन थे. हमलोग बाहर बरामदे में सोये हुए थे. रात के करीब एक बजे सुपरवाईजर आरके सिंह जो सिक्युरिटी का काम भी देखते थे मुझे जगाया और कहा कि अपने पिताजी को बुलाओ. पिताजी अन्दर आँगन में सोये थे. मैंने उन्हें जगाया तो वे बाहर आये तो सिंह साहब ने बताया कि मशीन चल रही है. उसकी आवाज़ यहाँ तक आ रही है. पिताजी ने कहा कि दो-तीन लोगों को साथ लेकर जाइये और देखिये कि वहां कोई है क्या. वे लोग गए और कुछ लोगों को साथ लेकर गए. काफी देर बाद लौटे और बताया कि वहां कोई नहीं था. मशीन अपने आप चल रही थी. उसे बंद कर दिया गया. इतना कहकर वे लोग अपने-अपने घर चले गए. अभी वे लोग घर पहुंचे भी नहीं होंगे कि मशीन चलने की आवाज़ फिर आने लगी. पिताजी को आकर उन्होंने बताया और फिर देखने चले गए. मशीन बंद कर उन्होंने मेन स्विच ऑफ कर दिया. वर्कशॉप बंद करके पिताजी को बताकर घर चले गए. सुबह के तीन बज चुके थे. उस दिन मशीन फिर नहीं चली. मुझे लगा कि यह एक संयोग हो सकता है. दूसरी रात फिर मशीन चलने लगी. चार स्टाफ को लेकर सुपरवाइजर साहब पिताजी के पास आये. उन्होंने कहा कि चौकीदार ने बताया कि एक घंटे से मशीन चल रही है. पिताजी ने जाकर देखने को कहा और मेन स्वीच बंद कर देने को कहा. वे लोग वर्कशॉप गए और मेन  स्विच बंद कर दिया. कोई आदमी वहां नज़र नहीं आया. पिताजी को जानकारी देकर वे सोने चले गए. उस वक़्त रात के दो बज चुके थे. आधे घंटे बाद फिर मशीनें चलने लगीं. फिर वे लोग आये और पिताजी को बताकर वर्कशॉप की और चल दिए. मशीन बंद कर उन्होंने में स्विच का ग्रिप भी निकाल दिया. कोई दिखाई नहीं पड़ा. वे सूचना देकर फिर अपने-अपने घर चले गए. उस रात फिर मशीनें नहीं चलीं. दूसरे दिन सुबह सिंह साहब फोरमैन के साथ आये. उन्होंने कहा कि सर कल सोमवार को प्रैक्टिकल का एक्जाम है. हो सकता है किसी छात्र  का प्रैक्टिकल पूरा नहीं हुआ हो और वह रात में प्रैक्टिस करता हो. सुपरवाइजर साहब ने कहा कि यदि ऐसा है तो वह दिखाई क्यों नहीं देता. हमारे पहुँचते ही गायब कहां हो जाता है. चलिए दिन में देखा जाये. वर्कशॉप खोलकर देखा गया लेकिन कोई नज़र नहीं आया. वर्कशॉप बंद कर वे चले गए. इतवार की रात फिर मशीनें चलने लगीं. सारे लोग परेशान हो गए कि यह कैसे हो रहा है. सोमवार को परीक्षा शुरू होने के वक़्त जब एक्जामिनर आये और जॉब देकर आठ घंटे में उसे पूरा करने को कहा. फिर अपनी जगह आकर बैठ गए. तभी उनकी नज़र टेबुल पर पड़ी. उन्होंने देखा कि वह जॉब बनाकर पहले से रखा हुआ है. उसपर रोल नंबर भी पंच किया हुआ था. इंस्ट्रक्टर को  बुलाकर पूछा तो पता चला कि वह रोल नुम्बर जिस लड़के का है उसकी मौत तीन माह पहले मोटरसाईकिल एक्सीडेंट में हो चुकी है. यह बात पिताजी के पास पहुंची तो उन्होंने कहा कि उसपर नंबर दे दीजिये. लगता है कि उसकी आत्मा भटक रही है. नंबर देकर उसे पास कर देने से उसकी आत्मा को शांति मिलेगी. एक्जामिनर ने नंबर दे दिया. और सचमुच उस दिन के बाद कभी भी रात के वक़्त अपने आप मशीनें नहीं चलीं. हम तीन वर्ष तक वहां रहे लेकिन ऐसी कोई घटना नहीं हुई.

----छोटे 

Wednesday 21 March 2012

गड्ढे के भूत


हमारे एक मित्र हैं पवन जी.योग के शिक्षक हैं. हाल में वे कुछ जरूरी काम से बस पर आरा से रांची जा रहे थे. रात के करीब एक  बजे यात्रियों को भोजन कराने के लिए बस एक लाइन होटल में रुकी. पवन जी अपना भोजन साथ  लेकर चले थे. पानी भी था. उन्होंने अपनी सीट पर बैठे हुए भोजन कर लिया . कुछ देर बाद मुत्र त्याग करने के लिए नीचे नीचे उतरे. लाइन होटल से जरा हटकर एक गड्ढे के पास उन्होंने खुद को हल्का किया. वापस लौटे तो अचानक उनकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. लगा कि कोई पीछे की और खींच रहा है. उनके पांव आगे बढने की जगह अपने आप पीछे की ओर बढ़ने लगे. करीब 15 कदम  वे पीछे चलते गये . अचानक उन्हें अहसास हुआ कि वे 20 फुट गहरे गड्ढे की ओर खिंचे जा रहे हैं. बस दो कदम का फासला रह गया था. उन्होंने अपनी मानसिक शक्तियों  को समेटा और खुद को गिरने से बचाया.थोड़ी देर वहीं बैठ गए.  फिर दो कदम आगे बढ़े और असंतुलित होकर गिर पड़े. कुछ देर बाद उठे और किसी तरह लाइन होटल की एक खाट पर आकर लेट गए. कबतक लेटे रहे उन्हें याद नहीं रहा. बाद में बस के कंडक्टर और खलासी ने उन्हें जगाया. वे बस पर आकर बैठ गए. एकाध घंटे बाद सोचने समझने लायक हुए तो पता चला उनका मोबाइल घटना के दौरान गिर पड़ा था. सारे नंबर उसी में थे. बस कई किलोमीटर आगे बढ़ चुकी थी. अब कुछ उपाय भी नहीं था. इत्तेफाक से उन्हें रांची के एक मित्र के घर का पता याद था. वे वहां पहुंचे. मन अस्थिर रहा. रांची के मित्र को घटना के बारे में बताया तो उन्हें जिज्ञाशा हुई. अगले दिन वे उनके साथ अपनी गाड़ी पर उस होटल को ढूंढते हुए पहुंचे. वहां एक पानवाले ने पूरी कहानी सुनने के बाद बताया कि उस गड्ढे में कई लोगों की गिरकर मौत हो चुकी है. रात को उसमें कई भूत बैठे रहते हैं. कई लोगों ने उन्हें देखा है. वहां मुत्रदान करने के पहले जमीन को थपथपा देना चाहिए. इससे वे हट जाते हैं. ऐसा नहीं करने पर वे गड्ढे में खींचकर मार डालते हैं. आप योगी हैं. इसलिये झटका खाकर रह गये. वरना कुछ भी हो सकता था. पवन जी का मोबाइल तो खैर नहीं मिला. किसी के हाथ लग गया लेकिन पवन जी ने कसम खाई कि रात के वक्त किसी अनजान जगह पर मुत्रदान करने के पहले जमीन को जरूर थपथपा दिया करेंगे.

...छोटे

Wednesday 4 January 2012

जब दादामुनी के साथ प्रेतनी ने व्हिस्की पी

यह अपने ज़माने के चर्चित फिल्म अभिनेता दादामुनी यानी अशोक कुमार का भी भूत-प्रेत से पाला  पड़ा था. उन्होंने उस ज़माने की एक  पत्रिका में  कुछ आपबीती घटनाओं के बारे में लिखा था. उनमें से एक घटना यूँ  हुई कि एक बार सूटिंग के बाद वे देर रात अपनी कार से  घर लौट रहे थे. जोरों की बारिश हो रही थी. रह-रहकर बिजली भी कड़क रही थी. गाड़ी चलने में उन्हें परेशानी हो रही थी. उन्होंने सोचा कि क्यों नहीं रस्ते में अपने दोस्त के गेस्ट हॉउस में रुक जाएँ और बारिश रुकने के बाद आगे बढ़ें. उन्होंने कार को गेस्ट हॉउस की तरफ मोड़ लिया. गाड़ी पार्क कर वे अंदर एक कमरे में चले गए. उन्होंने केयर टेकर से कहकर खिड़की के पास टेबुल-कुर्सी लगवा ली. एक जग पानी और ग्लास रखवा लिया. व्हिस्की की एक बोतल निकली और पेग बनाकर शिप करने लगे. तेज़ बारिश के बीच किसी ने दरवाज़ा खटखटाया. दरवाज़ा खोला तो उन्हें वहां एक खूबसूरत सी लड़की पानी से भीगी हुई खड़ी मिली. उसने बताया कि वह लिफ्ट लेकर एक ट्रक पर मुंबई जा रही थी. बारिश के कारण ट्रकवाला आगे नहीं जा रहा है. बारिश बंद होने के बाद जायेगा. मैंने खिड़की के पास आपको बैठे देखा तो चली आई. बारिश रुकने तक आप शरण दे दें तो....
''कोई बात नहीं अंदर आ जाओ'' दादामुनी ने उसे अंदर आने दिया फिर अपनी जगह बैठकर व्हिस्की पीने लगे. लड़की भी एक कुर्सी खींचकर उनके पास ही बैठ गयी. वह टकटकी लगाकर व्हिस्की के ग्लास की और देखने लगी.
''पियोगी?'' दादामुनी ने पूछा.
उसने सहमती से सर हिला दिया तो दादामुनी ने एक नया पेग बनाकर उसे दे दिया.
बारिश रुकने पर वह इजाजत लेकर बहार चली गयी. दादामुनी ने उसे ट्रक की तरफ जाते हुए देखा. ट्रक के पास पहुँचने पर  ट्रक ड्राईवर से उसे कुछ बातें करते हुए देखा. फिर उन्होंने देखा कि ट्रकवाले ने अचानक चाकू निकाला  और लड़की के सीने में घोंप दिया. लड़की सड़क पर गिरकर छटपटाने लगी और ट्रक वाला ट्रक लेकर भाग निकला. दादामुनी दौड़ते हुए वहां गए तो देखा लड़की मर चुकी है. वे अपनी कार से तुरंत थाना पहुंचे और थानेदार को घटना की जानकारी दी. थानेदार ने कहा कि वह उनका बहुत बड़ा फैन है. दादामुनी ने उसे घटनास्थल पर चलने को कहा. तभी एक सिपाही बोला कि वहां कोई क़त्ल नहीं हुआ है. जिस जगह की बात हो रही है वहां कई लोगों ने इस घटना की रिपोर्ट की है लेकिन वहां कुछ नहीं मिलता यह सब प्रेतलीला है.
दादामुनी के आग्रह करने पर सिपाही और दारोगा उनके साथ गए लेकिन दादामुनी यह देखकर दांग रह गए कि वहां न कोई लाश थी न खून के निशान. उन्हें मान लेना पड़ा कि सिपाही सच कह रहा था.
सिपाही ने कहा कि बहुत साल पहले इस जगह पर सही में एक लड़की का क़त्ल किसी ट्रकवाले ने किया था. उसकी आत्मा आज भी भटकती है और इसी तरह बरसात के मौसम में वह दिखाई पड़ती है.

-----प्रस्तुति: छोटे